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दोस्ती पर कविता

~ दोस्ती पर कविता ~

दोस्त…..

साँसे टूट रही थी,
आस जिंदगी की छूट हो चुकी थी,
पर यार था जो,
साथ छोड़ने को राजी ना था,
एक रिश्ता वो था,
जो आज काल पर भी
भारी पड़ा था…

मृत्यु डोल उठी थी,
सिंहासन छोड़ चुकी थी,
साथ ले जाने को हाँथ बढ़ाये खड़ी थी,
पर दोस्ती थी जो आज
जिद्द पर अड़ी थी…

कोई कसम ना थी,
कोई रस्म ना थी,
एक दोस्ती थी जो
जन्म और मृत्यु भी बड़ी थी…

यम विस्मित हो चुके थे,
काल सहम चुका था ,
ये कैसा दोस्त था
जो आज मौत से भी लड़े पड़ा था…

रिश्ता खून का ना था,
फिर भी ये कैसा जुनून था,
ये कैसा दोस्त था ,
मुसीबत में दोस्त के साथ खड़ा था…

– शिवम् शर्मा

रूरा, कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश

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