

ख़ामोशियां
~ ख़ामोशियां ~ जाने क्यों हर ज़ख़्म चुप था चुप रही ख़ामोशियां फिर भी तेरे दर्द-ए-ग़म को कह गई ख़ामोशियां जानता हूं हर ख़ुशी रूठी
~ ख़ामोशियां ~ जाने क्यों हर ज़ख़्म चुप था चुप रही ख़ामोशियां फिर भी तेरे दर्द-ए-ग़म को कह गई ख़ामोशियां जानता हूं हर ख़ुशी रूठी
काश ये वारदात नहीं होती जान तू बेवफ़ा नहीं होती और था हर सितम कुबूल मगर मुझसे बस तू जुदा नहीं होती मार देता तू
शाइरी जैसा कोई पेशा नहीं एक शाइर ही कभी मरता नहीं आख़िरी ये साँस लेनी है मुझे पास रहना तुम कही जाना नही मौत से
अब मुझको भी ज़ाम से वफा हो गई । जब से तू जानेमन बेवफा हो गई ।। आतिश बंद जलाया गुलिस्तान को । खुशियां जीवन
काश तुमसे न कभी जान जुदाई होती मेरी आँखों से ये बरसात न आई होती मेरी दुनिया न बसाते तो चलो सह लेते बन
Likhobhart.Com
An Initiative By Kumar Harish
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