

लिख रही है कलम
आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल मैदान की, माँ की वो लोरियां
आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल मैदान की, माँ की वो लोरियां
तुमको देखे बरसो हो गए तुम कैसे इतने निष्ठुर हो गए , तुम बिन दिल पर क्या क्या बीती कैसे तुम इतने संगदिल हो गये
आज गुरु पूर्णिमा के पुण्य दिवस पर पढ़िए गुरु की महिमा का वर्णन करता ये गीत – गुरु महिमा गीत गुरुजी के नाम से, सारे
इंसान जल रहा है, इंसान से यहाँ का। ऐसा है दौर आया, सुना पड़ा इलाका।। मुश्किल भरा सफर है, कब हो क्या इसका डर है
जिंदगी का सफर यूं बदल जाएगा, मैं न सोचा ये मौका निकल जाएगा। रंजिशें तोड़ दो छोड़ दो ख्वाहिशें, क्या पता साथ क्या तेरे कल
कोरोना काल में देश में जो हालत उत्पन्न हुए हैं उन्हें देखकर हृदय में बहुत पीड़ा होती है। उस पीड़ा को काफी समय तक सहने
“अटल बिहारी वाजपेयी को सादर नमन अर्पित करती कविता” नेत्र चक्षु और पटल बह रहे हैं बस अटल भीगते नयन पटल जब नही रहे अटल
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