भारत की आज़ादी के निर्भीक और महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को समर्पित चन्द्रशेखर आजाद पर कविता
महाराणा प्रताप के भाले सा ही
कड़का उसका प्रताप था
टकराकर जिससे हो गया चकनाचूर
सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य था,
वो मर्द कोई और नहीं
भारत मां का सपूत,
‘चन्द्र शेखर आजाद’ था …
परतंत्रता की काली रातों में जन्मा
वो स्वतंत्र चन्द्र ‘ आजाद ‘ था,
तोपे भी जिसको करती नतमस्तक
ऐसा वो वीर फौलाद था….
कापती थी धरा रौद्र से उसके,
नभ मण्डल में भी बिजली बनकर
उसका शौर्य कड़कता था
उसके लहू के उबाल से ही,
विक्टोरिया का पूरा का पूरा
खानदान कांपता था……
शोभित कर स्वाभाल पर रूप
विकराल काल का,
भृकुटी में तेवर रखता था,
उसकी एक नजर से ही
अंग्रेजो का कलेवर बिगड़ता था….
एक बार बन्दी बनाना उसको
हर गोरे का सपना था,
पर जिंदा पकड़ना तो दूर ही था,
उसको पहचाना भी
मुश्किलकाम लगता था….
था भेष बदलने में माहिर,
हवा सी फुर्ती रखता था,
उसका शब्दभेदी सा पिस्तौल,
अचूक निशाना रखता था…
हाय छला गया वो
अपनों के हाथों,
घर के जयचंदो से धोखा खाया था,
जाते जाते भी उसने
अल्फ्रेड पार्क में,
काल का वीभत्स तांडव दिखाया था….
रहा शेष जब कारतूस एक तो,
उसको उसने खुद अपनाया था,
छू चरण धरती माता के,
वन्दे मातरम् का जयघोष लगाया था……
उसको बन्दी बनाने का सपना,
फिर कभी गोरों का पूरा ना
हो पाया था,
वो आजाद था, आजाद ही रहा,
इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर
वो पण्डित चन्द्र शेखर ‘ आजाद ‘
कहलाया था…
– शिवम् शर्मा
रूरा, कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश
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