लिख रही है कलम

~ लिख रही है कलम ~

आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ,
रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम।

याद बचपन की वो खेल मैदान की,
माँ की वो लोरियां लिख रही है कलम।

नखरे इक-इक सभी बेवजह छुट्टियां,
मेरी हर खामियां लिख रही है कलम ।

गाँव की टोलियाँ छांव पीपल के वो,
खेलना गोटियां लिख रही है कलम।

घसकुटी गुलीडंडा के न्यारे वो खेल,
बचपना मस्तियां लिख रही है कलम।

अब तो होली दीवाली में रौनक नहीं,
संडे की छुट्टियां लिख रही है कलम।

झूले सावन के हरियालियां  खेतों की,
कुक कोयल की वो लिख रही है कलम।

लिखते आनन्द की आंख भी भर गयी,
अब कहाँ वो शमां लिख रही है कलम।

– आनन्द कुमार पाण्डेय

बलिया, उत्तरप्रदेश

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This Post Has 5 Comments

  1. राहुल कुमार सिंह

    आनंद भाई जी बहुत अच्छी अभिव्यक्ति हैं आपकी ✍️✍️✍️✍️✍️🙏🙏🙏🙏🙏

  2. Mantu yadav

    Very nice sir

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