

लिख रही है कलम
आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल मैदान की, माँ की वो लोरियां
आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल मैदान की, माँ की वो लोरियां
हमको भी ईश्वर ने अपने, हाथों से बनाया है अपने हाथों से मेरा सुंदर, रूप सजाया है मत कोस हमें तु बार-बार, शिकार नहीं हैं
इंसान जल रहा है, इंसान से यहाँ का। ऐसा है दौर आया, सुना पड़ा इलाका।। मुश्किल भरा सफर है, कब हो क्या इसका डर है
जिंदगी का सफर यूं बदल जाएगा, मैं न सोचा ये मौका निकल जाएगा। रंजिशें तोड़ दो छोड़ दो ख्वाहिशें, क्या पता साथ क्या तेरे कल
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