लिख रही है कलम
आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल मैदान की, माँ की वो लोरियां
आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल मैदान की, माँ की वो लोरियां
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