balatkari-samaj

बलात्कारी समाज

~ बलात्कारी समाज ~

सुनो बलात्कारी समाज
कभी थी वो भी एक जिंदादिल जान,
पर एक हादसे ने छीन ली उससे उसकी मुस्कान।
कुछ सालों पहले की है यह बात,
पर ज़ख्म हरे कर देती है हर बार यह बात।

कभी वो भी थी कोमल सी
नादान सी बच्ची,
उमर की थोड़ी पक्की पर
अक्ल की कच्ची,
रिश्तो पर विश्वास रखने वाली
एक सच्ची सी बच्ची।

सब प्यारा सा सुहाना सा था उसकी ज़िंदगी में,
पर फिर आई एक अंधेरी रात,
पता ना था लाई हैं एक रिश्तेदार रूपी वहशी दरिंदा अपने साथ।
खुश थी वो नादान इस बात से अनजान,
की खोने वाली है वो अपना आत्मसम्मान।
उपहार देने बुलवाया उसे, उस दरिंदे ने बार-बार,
और चली गई वो बिना सोचे एक बार।
फिर गोद में बिठलाकर बिटिया बुलाया,
मेरी परी बुलाकर करने लगा प्यार,
पर असल में था वो गंदा स्पर्श और अश्लील प्यार।

अरे! बच्ची समझ रहम कर देता ज़ालिम,
शर्म नहीं आई तनिक एक बार,
क्या मां बाप से नहीं ली थी कोई तालिम।
दरिंदे मार डाला तूने एक उड़ते परिंदे को,
जिंदगी भर का जख्म दे डाला एक मासूम को।

बाहर आई फिर वो सहमी सी,
इस बात से अनजान की
क्या हुआ है उसके साथ।
फिर हिम्मत कर बतलाई परिवार को यह बात,
धक्का सा लगा जब उन्होंने दिया उस दरिंदे का साथ।
हौसला हिम्मत सब टूट गया देख इस न्याय को,
‘इस समाज का न्याय’ जिसने जकड़ा हैं केवल लड़कियों को,

ना जाने ‘सौ अदब संस्कार’ सिखलाता है ये समाज
केवल औरतों को, हर बार।
पर जब सवाल उठता है मर्दों का तब
किसी को नहीं सूझता यह संस्कार।
अरे! गलती हमारे पहनने ओढ़ने के तरीके में नहीं
तुम्हारी गन्दी और घटिया सोच में है।

एक तरफ नारी को पूज करते हैं उसका सम्मान।
और दूजी ओर करते हैं भंग उसी नारी का मान।
जब भी कोई लड़की खोती है अपना आत्मसम्मान का ताज
तो उसका जिम्मेदार कोई एक नहीं होता, होता है यह पूरा बलात्कारी समाज

– समर्पण सिंह

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This Post Has 7 Comments

  1. Harinandan Kumar

    बहुत ही सुंदर पंक्तियां, आज के समाज को आईना (दर्पण ) दिखानेका काम करेगा !! बस कथनी कम ,करनी ज्यादा होनी चाहिए, अब घीस गई समाज की तमाम नीतियां! अब घीस गई मनुष्य की अतीत रीतियां ! है तुम्हें दे रहे हैं चुनौती कुरितियां!! बहुत ही शिक्षाप्रद एवं जमीं से जुड़े शब्द है। मेरे पास शब्द नहीं है कि कैसे वर्णन करुं तुम्हारे शब्दों को,बस यशस्वी भव, दीर्घायु भव‌ 🙌💐💐

  2. Aayush kumar

    Bahut aacha

    1. Sudha Mundra

      अद्भुत रचना, एक एक पंक्ति समाज की सचाई बयान कर रही h

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