महाभारत पर आधारित द्विपार्थ उवाच व केशव उवाच
~ द्विपार्थ-उवाच् ~
धरती की कोख में
बीज युद्ध के बोकर
हँस रहे हो सखा
सबकी आँख भिगोकर
जानता हूँ वासुदेव
तुम्हारी मुस्कान को
बाँसुरी की तान को
लिए-दिए अपमान को
और अखंड ज्ञान को
फिर क्यूँ रचा धरा पर
यह महासमर
उत्तम होता
गर यह न होता
मन होता न आरत
जो न होता महाभारत
बता सखा गर्व क्या रह गया
अपने स्वाभिमान का।
x x x x x x x x x x x x x x x x
चक्रधर
खंडकर
न मुंड
खंड करो धरा के
उस कुटिल गिरा के
बता क्या आवश्यक था ?
बनाना मानवता का ऐसा कुरुक्षेत्र
जहाँ भाई-भाई को मारे
शिष्य गुरु को सँहारे
करे गर्व इस पर
या गर्व करें
द्रौपदी के चीर-हरण पर
बताओ किसके गुण गाएँ हम
नहीं सखा
मैं झूठा चारण-पाठ नहीं कर सकता
तुम्हें बुरा लगे तो लगे
परंतु मैं धिक्कारता हूँ
ऐसे द्रोण को
ऐसे धृतराष्ट्र को
ऐसे युधिष्टिर को
ऐसे दुर्योधन को
जो मृत्यु सा जीवन जी पाये
पर कटु सत्य न कह पाये
नहीं सखा मैं झूठा चारण-पाठ नहीं कर सकता /तुम्हें बुरा लगे तो लगे।
~ केशव-उवाच् ~
मत स्वीकारो!
धिक्कारो!
और धिक्कारो!
द्विपार्थ !
मैं कौन था रचने वाला
महाभारत
मन स्वयं मेरा था आरत
मैने तो की थी प्रतिज्ञा
परंतु मानवता हितार्थ की अवज्ञा
उठाया अस्त्र होकर तृष्त
दिया ज्ञान
सहा अपमान
मैं कौन था ?
रचने वाला महाभारत
जब युद्ध ठना था
मैं स्वयं शांति दूत बना था
पर कुरु-वंश मानव नहीं
दानव बना था
जब न हो समता
तो कैसी मानवता ?
तब कौन पाता रोक
वह महाशोक
करो विश्वास
मैंने नहीं किया
वह महाविनाश
मत स्वीकारो
धिक्कारो और धिक्कारो
द्विपार्थ !
आज जो ये प्रश्न उठे हैं
कि हम किसके हाथ लुटे हैं
युग-युगांतर तक रहेंगे
गाथा महाभारत की कहेंगे
मित्र!
देख मेरा चरित्र
नीति-अनीति के मध्य
मैंने करके आदर्श का तर्पण
किया मानवता का वरण
अपना साम-दाम दंड-भेद
पाई विजय सखेद
प्रश्न उठे तो उठे
पर कुछ अन्य असंभव था
अनीति में ही छिपा
कौरवों का पराभव था
जब बाप पुत्रों को बाँटता है
लोहा लोहे को काटता है
तब मैं क्या करता
अगर द्रोण वैसे न मरता
तो अर्जुन मरता
अगर कर्ण वैसे न मरता
तो अर्जुन मरता
अगर दुर्योधन वैसे न मरता
तो भीम मरता
अगर भीष्म वैसे न मरता
तो पांडव मरते
पर मैंने की थी शपथ
करूँगा रक्षा ज्यों कवच
हित-पक्ष की
कोई चारण-पाठ करें
या न करें
अधर्म पर विधर्म की विजय हुई
यही है परिणाम
महाभारत के नाम
तुम स्वीकारो! या धिक्कारो !
मैं तुम पर छोडता हूँ
बैठो रथ हस्तिनाापर की ओर मोड़ता हूं।
– डॉ. सुशील कुमार ‘सायक’
लेखक से फेसबुक पर जुड़ने के लिए क्लिक करें
दानवीर कर्ण – कविता
यदि आप लिखने में रूचि रखते हैं तो अपनी मौलिक रचनाएँ हमें भेज सकते हैं,
आपकी रचनाओं को लिखो भारत देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
यदि आप पढ़ने में रूचि रखते हैं तो हमारी रचनाएँ सीधे ई-मेल पर प्राप्त करने के लिए निचे दिए गए ई-मेल सब्सक्रिप्शन बोक्स में ई-मेल पता लिखकर सबमिट करें, यह पूर्णतया नि:शुल्क है।
हम आशा करते हैं कि उपरोक्त रचना ~ महाभारत पर आधारित द्विपार्थ उवाच व केशव उवाच ~ आपको पसंद आई होगी, अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट करके अवश्य बताएं। रचना अच्छी लगे तो शेयर भी करें।
This Post Has 4 Comments
डॉक्टर साहब आपने बहुत ही अच्छी रचना प्रस्तुत की। मन खुश हो गया ऐसी रचना पढ़कर।
Pingback: नेहा सौंदर्य : कविता - शिवम् शर्मा, उत्तर प्रदेश | लिखो भारत
Pingback: तीन रंग की ओढ़ चुनरिया- मानसी मित्तल : कविता | लिखो भारत
Pingback: लिख रही है कलम - आनन्द कुमार पाण्डेय : गीत | लिखो भारत