~ नेहा सौंदर्य ~
एक नेह भरी नजरो से मैंने
देखा आज जो नेहा को,
नेहा की कुछ ठंडी बूंदे,
नेहित हो गई मेरे मन में
हरदम को…
वो शीतल तरल नेहा मोती,
चमक रहे थे जैसे हिम की ज्योति,
सहसा ऐसे घेर लिया था मेरा तन,
जैसे लिपट गई हो आ मुझसे
सूत कि कोई पुरानी कोटी…
हीना सी महक रही थी रज रज
सौंधी सौंधी,
सारी प्रकृति सजी थी ऐसे,
जैसे अलंकृत कर बैठी हो हीरे मोती…
(नेहा-बादल, नेहा-ओस, नेह-स्नेह, नेहित-स्थायित्व , अलंकृत-श्रंगार /सजावट,
सूती कपड़े की पुरानी कोटि ( कमीज़))
– शिवम् शर्मा
रूरा, कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश
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महाभारत पर आधारित द्विपार्थ उवाच व केशव उवाच
कुछ करके जाना है – कविता
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This Post Has 4 Comments
बहुत खूब शिवम जी🙏🙏🙏👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
नेहा को श्लेष अलंकार में सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया।
सौंदर्य से प्रकृति का सफर है।
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