लिख रही है कलम
आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल मैदान की, माँ की वो लोरियां लिख रही है कलम। नखरे…
आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ, रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम। याद बचपन की वो खेल मैदान की, माँ की वो लोरियां लिख रही है कलम। नखरे…
तुमको देखे बरसो हो गए तुम कैसे इतने निष्ठुर हो गए , तुम बिन दिल पर क्या क्या बीती कैसे तुम इतने संगदिल हो गये , एक हुए थे हम…
~ दोस्ती पर कविता ~ दोस्त..... साँसे टूट रही थी, आस जिंदगी की छूट हो चुकी थी, पर यार था जो, साथ छोड़ने को राजी ना था, एक रिश्ता वो…