आज का ये जहाँ पहले जैसा कहाँ,
रो-रो हर दास्ताँ लिख रही है कलम।
याद बचपन की वो खेल मैदान की,
माँ की वो लोरियां लिख रही है कलम।
नखरे इक-इक सभी बेवजह छुट्टियां,
मेरी हर खामियां लिख रही है कलम ।
गाँव की टोलियाँ छांव पीपल के वो,
खेलना गोटियां लिख रही है कलम।
घसकुटी गुलीडंडा के न्यारे वो खेल,
बचपना मस्तियां लिख रही है कलम।
अब तो होली दीवाली में रौनक नहीं,
संडे की छुट्टियां लिख रही है कलम।
झूले सावन के हरियालियां खेतों की,
कुक कोयल की वो लिख रही है कलम।
लिखते आनन्द की आंख भी भर गयी,
अब कहाँ वो शमां लिख रही है कलम।
बलिया, उत्तरप्रदेश
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महाभारत पर आधारित द्विपार्थ उवाच व केशव उवाच
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This Post Has 5 Comments
आनंद भाई जी बहुत अच्छी अभिव्यक्ति हैं आपकी ✍️✍️✍️✍️✍️🙏🙏🙏🙏🙏
बहुत ही सुंदर सृजन
बहुत बहुत आभार
बहुत ही सुंदर।
Very nice sir