

हिन्दी है देश की पहचान
~ हिन्दी है देश की पहचान ~ तृण तृण में बसी है हिंदी, भारत की आत्मा है हिंदी। हिंदी को ले न पालो क्लेश, यह
~ हिन्दी है देश की पहचान ~ तृण तृण में बसी है हिंदी, भारत की आत्मा है हिंदी। हिंदी को ले न पालो क्लेश, यह
जन्माष्टमी पर कविता निज रक्षा के अधिकार का हो रहा हनन,चहुँ दिशाओं में फैला स्वार्थ का प्रभंजन। जन्माष्टमी पे भी नहीं है कहीं सुख शांति-एक
~ सावन (श्रावण) पर कविता ~ ओढ़कर धानी चुनरिया धरा बनी दुल्हन, बादलों के घूँघट से झाँकने लगा सावन। धरा की चुनर पर गोटे टाँकने
उर्जा व उत्साह से परिपूर्ण कविता ‘ बंधन को दो फेंक ‘ स्निग्ध शांति और पिंजरा पेड़ पर, कज्वल दिशाएँ हँस रही हैं मेड़ पर,
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