जन्माष्टमी पर कविता

जन्माष्टमी पर कविता निज रक्षा के अधिकार का हो रहा हनन,चहुँ दिशाओं में फैला स्वार्थ का प्रभंजन। जन्माष्टमी पे भी नहीं है कहीं सुख शांति-एक

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कविता
मनोरमा शर्मा

बंधन को दो फेंक

उर्जा व उत्साह से परिपूर्ण कविता ‘ बंधन को दो फेंक ‘ स्निग्ध शांति और पिंजरा पेड़ पर, कज्वल दिशाएँ हँस रही हैं मेड़ पर,

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