

खत नि:शब्द था
कल बन्द लिफाफे में मुझे एक खत मिला खत नि:शब्द था इक कोरा कागज़ न लिखावट न सजावट स्याही के निशान तक नहीं न कलम
कल बन्द लिफाफे में मुझे एक खत मिला खत नि:शब्द था इक कोरा कागज़ न लिखावट न सजावट स्याही के निशान तक नहीं न कलम
सह नही पाता जुदाई तुझसे खुद को भी खुद में रख नही पाता। भूल जाता हूँ अक्सर खुद का ही पता हुवा क्या हे मुझको
आखिरी बार जब तुमसे मिला नही था कोई शिकवा गिला न लफ़्ज होंठो पर न शिकन चेहरे पर थे अरमान कई खुदा के फरमान कई
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