उसकी आवाज में दर्द था
रोती हुई आँखे और
गिरते हुए आँसू
कांपते हुए होंठ और
टुटा हुवा दिल
सबकुछ छिपा हुवा था
फिर भी दिख रहा था
महसूस हो रहा था
उसके सीने की तकलीफ़
और घबराईं हुई सिसकियाँ
सुनाई दे रही थी
उसका एक एक शब्द
दर्द से लहूलुहान था
काँटे की तरह चुभी हुई तकलीफ़ और
चिमटे से खींची गई उसकी हिम्मत
में सहन नही कर पा रहा था
मुझे उसकी आवाज तो सुनाई दे रही थी
पर मै कुछ देख नही पा रहा था
वो दबे पांव बोले जा रही थी
और मै खुली आँख सुने जा रहा था।
मेरे हाथ में बंधा धागा
और उसकी हथेली की लकीरें
अब कुछ भी उसका नही था
अब न वो मेरी थी न मै उसका था।
लिखो भारत – कविता – कुमार हरीश
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