काश तुमसे न कभी जान जुदाई होती
मेरी आँखों से ये बरसात न आई होती
मेरी दुनिया न बसाते तो चलो सह लेते
बन के मेरे न सनम आग लगाई होती
कामयाबी की बुलंदी को सनम छू लेता
काश मेरे हक़ में भी यार खुदाई होती
जिसे सुनने को बेताब रहता था मेरा दिल
धुन मुहब्बत की कभी तो वो सुनाई होती
मेरा महबूब ख़ुदा मेरा मेरी धड़कन है
दिल में तेरे भी कभी बात ये आई होती
टूट के टुकड़े न हो जाते यूँ मेरे दिल के
तुमने प्यार की गर रस्म निभाई होती
तू जान लेता कायदा जो उल्फ़त का ‘राहुल’
जिंदगी अश्कों में हमने न डुबाई होती
राहुल कुमार सिंह
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