जीवन में जब लगे कहीं पर, है प्रकाश की कमी कहीं पर।
है प्रकाश की कमी कहीं पर, बसता हूँ मैं जग़ह उसी पर।।
हूँ शाम-रात में ही सही पर, हर दिन में हूँ हर कहीं पर।
हर दिन में हूँ हर कहीं पर, नाम है मेरा तिमिर वही पर।।
जाए जब सूरज पश्चिम पर, होय प्रकाश उसमें नहीं पर।
होय प्रकाश उसमें नहीं पर, छा जाता तब पूर्ण उसी पर।।
शनैः शनैः मैं बढ़ता ऊपर, दिखता जाता हर कहीं पर।
दिखता जाता हर कहीं पर, नाम है मेरा तिमिर वही पर।।
सभी चराचर भय के मारे, रुक जाते जो हैं जहीं पर।
रुक जाते जो हैं जहीं पर, आगे जाता कोई नहीं पर।।
कालिमा मेरी के आगे ही, मुँह छुपाये रवि कहीं पर।
मुँह छुपाये रवि कहीं पर, नाम है मेरा तिमिर वही पर।।
मेरे उजले अंधियारे में ही, बने निशाचर सबल सभी पर।
बने निशाचर सबल सभी पर, होय न रिपु उनका कहीं पर।।
मेरे तम के शरणागत ही, दिखे जगत में हर कहीं पर।
दिखे जगत में हर कहीं पर, नाम है मेरा तिमिर वही पर।।
कालगमन के साथ ही मैं भी, होता कवलित जगह सभी पर।
होता कवलित जगह सभी पर, समझो मैं निष्प्राण नहीं पर।।
लिए नव आशाओं का युग, आये दिनकर मेरे बाद यहीं पर।
आये दिनकर मेरे बाद यहीं पर, नाम है मेरा तिमिर वही पर।।
लेखक से फेसबुक जुड़ने के लिए क्लिक करें।
नारी उत्पीड़न – कविता
विश्व शांति दूत – कविता
यदि आप लिखने में रूचि रखते हैं तो अपनी मौलिक रचनाएँ हमें भेज सकते हैं,
आपकी रचनाओं को लिखो भारत देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
यदि आप पढ़ने में रूचि रखते हैं तो हमारी रचनाएँ सीधे ई-मेल पर प्राप्त करने के लिए निचे दिए गए ई-मेल सब्सक्रिप्शन बोक्स में ई-मेल पता लिखकर सबमिट करें, यह पूर्णतया नि:शुल्क है।
हम आशा करते हैं कि उपरोक्त रचना आपको पसंद आई होगी, अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट करके अवश्य बताएं। रचना अच्छी लगे तो शेयर भी करें।
This Post Has 9 Comments
बहुत सुंदर 🙏
बहुत बहुत आभार धर्मेंद्र सिंह जी
अति उत्तम
प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया मित्र योगेश जी
Bahut shandar sir ji
प्रणाम गुरुदेव.. 🙏 आपका आशीर्वाद सदैव बना रहे। 🙂
Pingback: ताश के पन्नों सी जिंदगी -उषा यादव : कविता | लिखो भारत डॉट कॉम
Pingback: संघर्ष करो : प्रेरणादायक कविता - ज्ञानेंद्र कुमार सूर्य | लिखो भारत
Pingback: शिक्षा का अधिकार - राहुल कुमार सिंह : कविता | लिखो भारत