~ शिव महिमा ~
कैलाशपति, वो भोलेनाथ
वो उमापति, वो महाकाल
देव, दानव, मानव के स्वामी
वो चंद्रशेखर, वो नटराज
डम डम डम जिसकी डमरू बाजे
और त्रिशुल हाथों की शान
गले में पहने सर्पों की माला
भभूत जिसकी है पहचान
प्रलयकारी है तांडव जिसका
तीसरे आँख से बहे अग्नि की धार
जटा में जो बांध ले गंगा
और चंद्र को भी दे स्थान
क्रोध रूप हो जिसका रूद्र
मौन रूप हो जिसका शून्य
बेल पत्र के अर्पण से बस
रहता जो प्रसन्न और खुश
भांग, धतूरा का सेवन कर
जो पाता जहां का सारा सुख
उस भोलेनाथ भगवान को हम
कहते शम्भू, शंकर, शिव।
मोतिहारी, बिहार, भारत
लेखक से फेसबुक व इन्स्टाग्राम से जुड़ने के लिए क्लिक करें।
शिक्षा के दीप – कविता
दानवीर कर्ण – कविता
अब ऐसे राम पैदा नही होते – कविता
यदि आप लिखने में रूचि रखते हैं तो अपनी मौलिक रचनाएँ हमें भेज सकते हैं,
आपकी रचनाओं को लिखो भारत देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
यदि आप पढ़ने में रूचि रखते हैं तो हमारी रचनाएँ सीधे ई-मेल पर प्राप्त करने के लिए निचे दिए गए ई-मेल सब्सक्रिप्शन बोक्स में ई-मेल पता लिखकर सबमिट करें, यह पूर्णतया नि:शुल्क है।
हम आशा करते हैं कि उपरोक्त रचना शिव महिमा आपको पसंद आई होगी, अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट करके अवश्य बताएं। रचना अच्छी लगे तो शेयर भी करें।