~ शिक्षक पर कविता ~
ईश्वर ने हमको दिया, शिक्षक एक प्यारा उपहार
जो अंधकार को दूर करे, फैलाये जन जन ज्ञान
दया, धर्म का पाठ पढ़ा, करता है वह राष्ट्र निर्माण
हम अज्ञानी इंसानों में, फूँक देता जो पुनः प्राण
शिक्षक के बिना अधूरा, अपना यह प्यारा संसार
ईश्वर भी कहता है पहले, शिक्षक को करो प्रणाम
ईश्वर तक पहुचां सके, शिक्षक को ही उसका ज्ञान
कहता मैं यह बात नहीं, कहते अपने ग्रन्थ, पुराण
महर्षि नारद से मिला, प्रहलाद को नारायण का ज्ञान
भक्ति चरम तक किया, मृत्यु को हाराया था हर बार
उसके भक्ति भाव को देख, प्रसन्न हुए थे भगवान
ले अवतार नरसिंह का, हिरण्य कश्यप किया संहार
विश्वामित्र से ज्ञान लिया, दशरथ के नंदन थें श्री राम
पिता वचन सम्मान खातिर, निकल पड़े थे वनवास
पुरूषोत्तम बन जग में किया, प्रतिष्ठित गुरु का नाम
विश्वामित्र प्रसन्न हुए जब, जग में मिला उन्हें सम्मान
कृष्ण न होते शिक्षक पार्थ के, देता कौन गीता ज्ञान
धर्म, अधर्म के युद्ध में कैसे, लड़ता हर योद्धा महान
महाभारत के चक्रव्यूह का, अभिमन्यु था एक विराम
शिक्षक बने पिता थे एक दिन, सुनाया चक्रव्यूह ज्ञान
बुद्ध न देते ज्ञान धरा पर, पढ़ाता कौन अहिंसा पाठ
अंगुलीमाल डाँकू को फिर, देता कौन अहिंसक नाम
“अपो दिपो भव” का, मिलता कभी ना हमको ज्ञान
शस्त्र त्याग अशोक कैसे, बचाता मानवता की जान
शिक्षक ना मिलता लक्ष्मी को, बनती कैसे वीर महान
अंग्रजों को धूल चटा, जलाती कैसे वह क्रांति आग
बर्छी, भाले, तलवारों से, करती कैसे दुश्मन पे वार
“खूब लड़ी थी वह मर्दानी”, गाता कौन घर घर गान
डॉ. सर्वपल्ली ने दिया, शिक्षा में अनुपम योगदान
कभी दार्शनिक बने कभी, जलाया ज्ञान का प्रकाश
जिसके खातिर आज भी, करते है हम उनको याद
उनके जन्मदिन को मनाते, देते शिक्षक दिवस नाम।
(पूर्णतः मौलिक, सुरक्षित और स्वरचित)
- नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार
This Post Has 3 Comments
बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर रचना है।
बहुत बहुत धन्यवाद देव व्रत जी।