शिक्षक दिवस पर कविता

~ शिक्षक दिवस पर कविता ~

जीवन मग से घोर निशा हर, ज्ञान प्रभा फैलाते,
क्लेश जलद को दूर करें व, प्रमोद वृष्टि करवाते।
सत्य पथ चलना सीखे हम,जिनके कर कमलों में,
जो ज्ञान के गागर में सागर हों, वही गुरु कहलाते।।

०५ सितंबर ८८ को,भारती ने स्वर्ण रतन था पाया,
तमिलनाडु का तिरुमनी गांव,था गर्व में तब हर्षाया।
राधाकृष्णन नाम था जिनका,थे शिक्षक बड़े विद्वान,
मनाने को शिक्षक दिवस,उनका जन्म दिन अपनाया।।

गुरु की शिक्षा के खातिर, छात्र धन्यवाद हैं करते,
देकर कुछ उपहार स्वरूप,शिष्य साधुवाद हैं करते।
यूंँ ज्ञान का मोल चुकाना, सारे जीवन में कठिन है,
मान सम्मान करते उनका,संग अभिवाद हैं करते।।

गुरु बिन है ज्ञान अधूरा, ज्यों पादप जड़ विहीन,
ज्ञान बिना मानव निर्बुद्धि,ज्यों बिन पानी के मीन।
बिन बुद्धि के इंसान है होता, भी एक पशु समान,
बिन ज्ञान बुद्धि के हरदम,मनुज के हैं आते दुर्दिन।।

इतिहास खोल कर जो देखो, वर्णन इसका मिल जाता है,
सदियों से भी यह सब है पुराना, ये गुरु शिष्य का नाता है।
धर्म की रक्षा की शिष्यों ने, गुरु देव से ज्ञान को पाकर हीं,
गुरु की महिमा का महत्व,सारा इतिवृत्त हमें बतलाता है।।

गुरु वशिष्ठ विश्वामित्र से, श्री राम ज्ञान को पाते हैं,
जिससे सारे जग में, मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं।
मार तारका व रावण को,धरा को दैत्य विहीन किया,
लंका जीत भार्या को पाया, राम राज्य को लाते हैं।।

द्वापर में गुरु सांदीपनी, से कृष्ण ज्ञान को पाए,
दक्षिणा स्वरूप गुरु पुत्र को, जिंदा वापस लाए।
गीता ज्ञान दिया जगत को,जो है जीवन का सार,
महाभारत में दुष्ट संहारे,भू पाप विमुक्त करवाए।।

गुरु द्रोण ने अर्जुन को, धनुर्विद्या का ज्ञान दिया,
पुत्र से भी बढ़कर देखो,था अर्जुन को मान दिया।
गुरु कृपा पाकर हीं पार्थ, सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहलाए,
महाभारत में धर्म के लिए,गांडीव से संधान किया।।

कर्ण ने अपने गुरु रूप में, था परशुराम को पाया,
परशुराम ने युद्ध कला का,हर कौशल सिखलाया।
गुरु ज्ञान को पाकर हीं, राधे! धनुर्विद्या प्रवीण हुए,
ऊंच-नीच का भाव मिटा के,जग को पथ दिखलाया।।

मात-पिता भी गुरु के जैसे, है देते जीवन ज्ञान,
महिमा उनकी हरि समान, खुद कहते भगवान।
ये धन-दौलत व गाड़ी घोड़े, यही धरे रह जाएंगे,
सेवा अपने मात-पिता की,और कर ले गुणगान।।

अचला भी शिक्षक के जैसे, जीवन पथ दिखलाती,
परोपकार कर के हम पे,है उसका पाठ हमें पढ़ाती।
पेड़ पौधों संग फल अनाज, जो जीवन में अनमोल,
जीवन है परमार्थ के खातिर,ये धरा हमको बतलाती।।

  • राहुल कुमार सिंह
    नवी मुंबई

शेयर करें :-

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on email
Share on facebook

This Post Has 2 Comments

आपकी प्रतिक्रिया दीजियें

लेखक परिचय

नयी रचनाएँ

फेसबुक पेज

ई-मेल सब्सक्रिप्शन

“लिखो भारत” की सभी पोस्ट सीधे ई-मेल पर प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता यहाँ लिखें।
पूर्णतया निशुल्क है।

रचना भेजिए

यदि आप लेखक या कवि हैं तो अपने विचारों को साहित्य की किसी भी विधा में शब्द दें।
लिखिए और अपनी रचनाएं हमें भेजिए।

आपकी रचनाओं को लिखो भारत देगा नया मुकाम, रचना भेजने के लिए यहाँ क्लिक करें।