शाइरी जैसा कोई पेशा नहीं
एक शाइर ही कभी मरता नहीं
आख़िरी ये साँस लेनी है मुझे
पास रहना तुम कही जाना नही
मौत से मैं वक़्त लेकर रो पड़ा
मौत को पहले कभी देखा नहीं
हर किसी को छेड़ता रहता है वो
मोहतरम की कोई मोहतरमा नहीं
स्कूल में ये पाठ बच्चों को पढ़ा
दिल किसी का तोड़ना अच्छा नहीं
बाद तेरे इस कदर टूटा है दिल
ये किसी से बात अब करता नहीं
क्या पता कब वो आ जाए देखने
लाश को बेचैन की दफ़ना नहीं
– सार्थक काला { बेचैन शाइर }
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बचपन – कविता
अब मुझको भी ज़ाम से वफ़ा हो गई – ग़ज़ल
तुमने प्यार की गर रस्म निभाई होती – ग़ज़ल
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This Post Has 2 Comments
बेहतरीन शायर अभिनंदन
सही कहा सार्थक जी आपने की शायरी जैसा कोई पेशा नहीं। आपके शब्दोंं की बारिश ऐसे ही हम पर होती रहे। बढ़ यही कामना है मेरी।