शर्म करो ओ भूखे भेडियों
अपनी व्यभिचारी पर
बहुत बुरा अपराध किया है
राह चलती नारी पर।
मृत्यु दंड भी तुम्हें मिले तो
अपराध तुम्हारा कम ना होगा
तुम्हारे जैसे बेटों के लिए तो
तुम्हारी माँ को कोई गम ना होगा।
संस्कार जिस माँ ने दिये
अब वो क्रन्दन कहीं पे करती होगी
तुम्हारे ऐसे कृत्य को देखकर
वह मन ही मन में रोती होगी।
जिस बहना ने तुमको राखी बाँधी
वह शर्मशार कहीं पे बैठी होगी
अपनी अस्मिता को आज कहीं पर
पल ही पल में खोती होगी।
अब अपनी रक्षा का वो, वचन नहीं तुमसे लेगी
तुम जैसे हैवानों को, भाई अपना नहीं कहेगी
चुल्लूभर पानी में डुबो, लेकिन ना दुष्कर्म करो
मानवता है यदि जरा भी, शर्म करो तुम शर्म करो।
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This Post Has 4 Comments
बहुत सुन्दर पक्तियां लिखें हैं अपने।
ऐसे ही लिखते रहिये और आगे बढ़ते रहिए।यही कामना है मेरी।
देवव्रत जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार।
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