~ शहीद राजगुरु पर हिंदी कविता ~
राजगुरु की अमर कहानी लिखता हूंँ जज्बातों में।
शिथिल हुआ है अंतर्मन, रोए कलम अँसुपातों में।
वतन के हित बलिदान किया, वो थे फांँसी पे झूल गए।
राजगुरु सुखदेव भगत सिंह, थे अपने सपने भूल गए।
वतन परस्ती के खातिर, जिन वीरों ने बलिदान दिया।
राजगुरु वो नाम था जिसने, था सब कुछ कुर्बान किया।
भाद्रपद के कृष्णपक्ष की, त्रयोदशी तिथि थी आई।
24 अगस्त 1907 को ,अपनी धरा भी तब हर्षाई।
महाराष्ट्र के जिला पुणे का, धन्य वो खेड़ा गांँव।
जहां पले थे राजगुरु, अपने मां की ममता छाँव।
अल्पायु में पिता को खोया, दुख भरा बचपन पाया।
मां भाई ने मिलकर पाला, था बनके ईश्वर की काया।
शिक्षा पाने के खातिर, वाराणसी प्रस्थान किया।
धर्म ग्रंथों के संग अपने, वेदों का था ज्ञान लिया।
आजाद भगत सिंह से सरीखे, थे मित्र यहां वो पाए।
आजादी वह देश भक्ति का, मिलकर अलग जगाए।
लाजपत राय की हत्या से, था अंतर्मन में क्रोध अपार।
लिया बदला तब गोरों से, सैंदर्श गया परलोक सिधार।
दिल्ली असेंबली में बम फेंका, अंग्रेजों को दहलाने को।
गोरों ने था पकड़ लिया, वीर न भागे पीठ दिखलाने को।
फांसी की जो बात सुनी, झूम उठे तीनों मर्दाने।
लगे गूंँजने और तीव्र हो, उनके मस्ती भरे तराने।
लगी लहराने कारागृह में, इंकलाब की धारा।
जिसने भी था सुना वही, प्रतिउत्तर में हुंकारा।
मृत्यु की जो नाम सुने, सब लोग काँप हैं जाते।
उसको पाने को झगड़ रहे, हैं ये कैसे मदमाते?
गूंँज उठा आलाप वही, मेरा रंग दे बसंती चोला।
पहन जिसको था मनु ने, अंग्रेजों पे धावा बोला।
संग भगत सिंह व सुखदेव, दिए आहुति प्राणों की।
भारत मां का कर्ज चुकाया, व उनके एहसानों की।
तीनों वीरों ने हंँसकर, था अपना बलिदान किया।
मातृभूमि पे शीश चढ़ाया,अपना सर्वस्व दान किया।
खुशी – खुशी फंदे को चूमा, मातृप्रेम की ज्योत जलाई।
कोई सिकन न मुख पे था, लोगों में तब आस जगाई।
और कहानी क्या मैं लिखूं, अपने भारत के उस वीर का?
शब्द भी मेरे द्रवित हुए हैं, सुन कर कहानी शूरवीर का?
और नहीं लिख सकता मैं, है अंतर्मन अवरुद्ध हुआ।
लिखकर उनकी गौरव गाथा, मैं मन से हूंँ शुद्ध हुआ।
– राहुल कुमार सिंह
नवी मुंबई (महाराष्ट्र)
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