~ सावन (श्रावण) पर कविता ~
ओढ़कर धानी चुनरिया धरा बनी दुल्हन,
बादलों के घूँघट से झाँकने लगा सावन।
धरा की चुनर पर गोटे टाँकने लगी हवा-
पयोद बेताब धरा को करना चाहे चुंबन।।
सावन के झूले में समाने लगा है संसार,
बादल विचरने लगा करके नभ को पार।
कोयल की कूक सुन सब हुए मतवाले-
और प्रकृति करके बैठी सोलहों श्रृंगार।।
सावन में मेघ बरसते हैं सदा झम-झम,
धरा की चुनर पर पानी बरसे थम-थम।
हँसमुख हरियाली को देख हर्षित विहंग-
प्रेयसी से मिल प्रिय उर नाचे छम- छम।।
सावन उत्पन्न करता चहुँओर सम्मोहन,
प्रणयातुर है प्रकृति,दादुर करते गायन।
पुलकित होके रज-कण तृप्त हुए अब-
इंद्रधनुष के संग सावन हुआ मनभावन।।
– मनोरमा शर्मा
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This Post Has 2 Comments
अति सुन्दर, हार्दिक धन्यवाद
बहुत ही खुबसूरत