जीवन का संधि पत्र है यह
लिख रहा हूं दिल की भाषा
दिल के बहकावे में आकर
सचमुच तुम प्यारी लगती हो
जब जब हंसती हो
जब जब मुस्कुराती हुई
दिल पर छा जाती हो
और क्या लिखूं तेरी अनुशंसा में
और क्या लिखूं तेरी प्रशंसा में
प्रस्तुत स्वयं हूं
लिख रहा हूं संधि पत्र
अपनी खोने का
तेरा होने का
सच सब बंधन खोटे हैं
सब रिश्ते छोटे हैं
तेरी आगे सब कुछ लघु
बता क्या पढूं तेरा कसीदा
मैं तुझ पर फिदा
नजाने क्यों मुझे लगता है
तेरा माथा एक मंजिल है
जिसे छूकर अमर हो जाऊंगा
जब तुझ में खो जाऊंगा
कोई शर्त नहीं रखता
पर तेरे सीने पर सिर रखकर सोना चाहता हूं
तेरी जुल्फों की छाया में खोना चाहता हूं
बस तेरा ही बस तेरा ही होना चाहता हूं
यह संधि पत्र है मेरा
तुम कर सकती हो इस पर
अपनी सहमति के हस्ताक्षर।।
– डॉ. सुशील कुमार ‘सायक’
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This Post Has 4 Comments
अद्भुत रचना
बहुत खूब। उम्दा प्रस्तुति।
धन्यवाद नीरज जी
सभी का हार्दिक आभार।