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सम्पूर्ण आज़ादी

~ सम्पूर्ण आज़ादी ~

हैं सभी जानते 47 में, देश अपना आजाद हुआ।
टूटी गुलामी की जंजीरें, उजड़ा घर आबाद हुआ।

पर आज आजादी में पशुओं के, चारे खाए जाते हैं।
अब आजाद हिंद में आतंकी , शहीद बताए जाते हैं।

आजादी का मतलब आज, केवल करते रहो घोटाला है।
देश को तब तक लूटो जब तक, निकले नहीं दिवाला है।

भारत मां के दामन में, कुछ दाग नज़र आ जाते हैं।
निर्भया के सिसकियों से, सब अश्रु से भर जाते हैं।

जिस कुसुम कली को देख के मन में, प्यार उमर भर आता है।
कुछ बहशी दरिंदों के मन में, तब शैतान उत्तर क्यों आता है?

रसूखदार लूट देश को भागे, ना कोई चर्चा शोर हुआ।
करे गरीब रोटी के खातिर, कैसे फिर वह चोर हुआ?

घूसखोरी की तेज को देखो, तड़प रहे हैं लोग यहां।
रक्तबीज के रक्त ये देखो , हैं देते रहते रोग यहां।

पैसे की ताकत पे बजता, बिन फूंके ही शंख यहां।
फाइल पर पैसे रखते हीं, लग जाते हैं पंख यहां।

धर्म के नाम पर सब लड़ते ,ये कैसी खामख्याली है?
हम पत्ते एक तरु के हैं, मजहब तो बस एक डाली है।

जात-पात के लूट में देखो, पैदा अजब संकट हुआ।
बैर बढ़ा के आपस में अब, इंसान एक मर्कट हुआ।

खेल भावना ना जाने , कहां पर पानी भरते हैं?
हार-जीत का फैसला, सट्टेबाज यहां पे करते हैं।

आजाद मुल्क में लाल चौक पे, झंडे फाड़े जाते हैं।
भारत मां के तन पर, नुकीले खंजर गाड़े जाते हैं।

काले झंडे कुछ हिस्सों में, आज दिखाई देते हैं।
न राष्ट्रगान न देशभक्ति के, गीत सुनाई देते हैं।

अमर सपूतों के गौरव को, आज भुलाया जाता है।
आजाद देश में देशद्रोह का, पर्व मनाया जाता है।

दिल्ली के दिल में बैठे , गद्दार दिखाई देते हैं।
भारत तेरे टुकड़े होंगे, अब शोर सुनाई देते हैं।

हालत देख देश की अपनी, अब राष्ट्रगान शर्मिंदा है।
गाली देने वाले वतन को, आज अभी तक जिंदा है।

आजादी में मां का आँचल, है हमने काला कर डाला।
पिया सुधा जिस मां का दामन, हमने दुख से भर डाला।

आजादी का मतलब न तो देश निरादर होता है।
आजादी का मतलब न तो धर्म अनादर होता है।

आजादी ना होती देश में, है लूट-पाट मचाने में।
आजादी न कुसुम बाला को, नोच-नोच के खाने में।

आजादी का मतलब खुद का, लहू बहाना होता है।
देश हित में जीते मरते, केवल शीश कटाना होता है।

जात धर्म छोड़ दुश्मनों को,  ख़ाक मिलाना होता है।
युवा पीढ़ी को देशभक्ति का, पाठ पढ़ाना होता है।

सत्ता लोलुप नेताओं से, देश को मुक्त कराना होगा।
वतन परस्ती को वतन का, अहम धर्म बनाना होगा।

जातिवाद छोड़ राष्ट्रवाद को, आज हमें अपनाना होगा।
अब कवियों को भी कविता, हथियार बना के गाना होगा।

राहुल कुमार सिंह 

नवी मुंबई (महाराष्ट्र)

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