सह नही पाता
जुदाई तुझसे
खुद को भी खुद में
रख नही पाता।
भूल जाता हूँ अक्सर
खुद का ही पता
हुवा क्या हे मुझको
समझ नही आता
भीड़ में भी आलम
तन्हाई का होता है
ये बात मै दुनियां को
कह नही पाता ।
रात कब आती है
पता नही चलता
सुबह तक भी मै
सो नही पाता।
तेरी यादों ने तो जैसे
कैद कर रखा है
इनसे आजाद मै
हो नही पाता।
तुम्हे फर्क नही पड़ता
मैं जानता हूँ
पर दिल को ये दिलासा
दे नही पाता।
सह नही पाता
जुदाई तुझसे
खुद को भी खुद में
रख नही पाता।
“यह रचना मेरे द्वारा स्वरचित व पूर्णतया मौलिक है। इसका सर्वाधिकार मेरे पास सुरक्षित है।
आपको ये रचना कैसी लगी ? आपके सुझावों व विचारों की प्रतीक्षा मे… – कुमार हरीश “
आखिरी बार जब तुमसे मिला- हिंदी कविता – कुमार हरीश
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