~ रक्षाबंधन पर कविता ~
इस बंधन को कम न समझो, राखी प्रीत का है त्यौहार।
धागों में छिपी है इतनी ताकत, करती भाई का उद्धार।
है ये रक्षा सूत्र न केवल धागा, भाव-विचार संसार।
है ये तज ओढ़नी लोलुपता की, पावन चुनर धार।
बहनें फूल से थाल सजाकर, है करती भाई का सत्कार।
रक्षा का है वचन वह पाती, व साथ में पाती हैं उपहार।
इतिहास खोल कर जो देखो, इसका वर्णन मिल जाता है।
सदियों से भी जो अटूट पुराना, ये भाई बहन का नाता है।
सतयुग में श्री हरि बलि के, द्वारपाल बन जाते हैं।
लक्ष्मी बली को बांधे सूत्र में, तब वैकुंठ को आते हैं।
त्रेता में सुन बहन का कहना, रावण सिया हर लाता है।
सिर्फ सुर्पनाख के खातिर वो, अपना सर्वस्व लुटाता है।
द्वापर में शिशुपाल वध से,प्रभु! घायल उंगली कर जाते हैं।
द्रोपदी बांधे उन्हें रेशमी सूत्र जो, वो बाद में लाज बचाते हैं।
कर्णावती चित्तौड़ की रानी, जब वो संकट में आती है।
राज बचाने के खातिर, हुमायूं को राखी भिजवाती है।
सिकंदर जो था विश्व विजेता, पुरु से डर जब जाता है।
भार्या जो भेजे पुरु को राखी, प्राण-दान तब पाता है।
अंग्रेजों से छिपकर के , आजाद शरण जहां पाते हैं।
उस गरीब बाला के लिए, वो भाई का धर्म निभाते हैं।
बहन का प्यार कभी जीवन में, है कम नहीं हो सकता।
इसकी दुआ में है वो बल, भाई को गम नहीं हो सकता।
कुछ रिश्तो में दूरी से, वो डोरी कमजोर हो जाती है।
भाई बहन के प्यार को लेकिन, राखी और बढ़ाती है।
हमें कुछ ही बहनों की रक्षा का, है नहीं उठाना भार।
सारी सृष्टि के हम रक्षक हैं, और हम हीं सृजनहार।
रक्षा-सूत्र केवल बहनों की, रक्षा का नहीं निशान।
सारी वसुधा की सुरक्षा, और करना है कल्याण।
बिन पादप पशु पक्षी पहाड़, धरा हो जाएगी बेरंग।
जब-जब दुख के बादल छाए, है रहना इनके संग।
मात-पिता की सेवा करना, है जिनके चरणों में धाम।
उनके बुढ़ापे में सेवा और, उनकी रक्षा का है काम।
रक्षाबंधन धागे का पर्व, है दिन ये बड़ा अनमोल।
हर्ष से ये पर्व मनाएं, जय संस्कृति जय जन बोल।
– राहुल कुमार सिंह
नवी मुंबई (महाराष्ट्र)
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This Post Has One Comment
बहुत सुंदर