जीवन की प्रतिकूल परिस्थतियो में भी
हमेशा वृक्ष की तरह खड़े रहते हैं
एक पिताजी ही है जो हिमालय से
औलाद हित के जुनून में अड़े रहते हैं।
फटी चप्पल पहने जब ऊँचे कॉलेज में
दाखिले के लिये सपना देखना हो
या जीवन की इस आजीवंत भीड़ में
मुझे कोई अपना देखना हो।
कोई नहीं हे यहाँ किसी का
सब इस्तेमाल के मौके हैं
ये जो व्हाट्सऍप पर साथ निभाने के वादे हैं
ये ही तो अक्सर धोखे हैं।
हजारो लोग फेसबुक पर थे
बहुत से संदेश खेरीयत के पढ़े थे
पर जब बाइक से गिरा तो अस्पताल में
पिताजी सबसे पहले खड़े थे।
सुबह ऑपरेशन होगा इसलिए
रात भर अस्पताल में चबूतरे पर पड़े थे
ऑपरेशन के लिये पैसे कम हैं
इसलिए अपना स्कूटर बेचने पर अड़े थे।
तब से समझ गया काल्पनिक दूनियाँ सी
नदी का कोई किनारा नहीं है
ये बस प्रदर्शन की दुकान है
पिता जैसा कोई असली सहारा नहीं है।
इसलिए इस काल्पनिक प्रदर्शन की
दुकान से बाहर आना होगा
सिर्फ दिखावें के लिए नहीं
पिता के साथ वास्तविक समय बिताना होगा।
तभी हम पिता पुत्र का
संबंध समझ पाएँगे
पिता क्या होता है
यह महसूस कर पाएँगे।
रूपचंद सोनी
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