~ मुंशी प्रेमचंद पर कविता ~
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सन् अट्ठारह सौ अस्सी में
हुआ था जिस हीरे का जन्म
वाराणासी के लमही ग्राम में
बीत चुका था जिसका मन
कहते थें सब प्यार से धनपत
फिर विख्यात हुआ था मुंशी प्रेमचंद
कहानी, उपन्यास, लेखन ही
निरन्तर था चलने का पथ
रंगभूमि, निर्मला से
ओत प्रोत था जिसका मन
नमक के दरोगा, पूस की रात
सेवा सदन की जो करता बात
पंच परमेश्वर, गबन, गोदान,
प्रेमाश्रम, नाटक संग्राम
अलंकार और मान सरोवर
जो दिलाये बूढ़ी काकी की याद
गुल्ली डंडा, कफ़न, तावान
विध्वंस, मंत्र और दूध का दाम
हंस पत्रिका के संपादन का
किया था जिसने यह भी काम
साहित्य क्षेत्र में प्रसिद्ध हुआ जो
पाया कलम के सिपाही का नाम
साहित्य के ऐसे नायाब हीरे को
है कोटि कोटि नमन प्रणाम
है कोटि कोटि नमन प्रणाम।
मोतिहारी, बिहार, भारत
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