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मैं अभी बाहर हूँ..!!

“मैं अभी बाहर हूँ..!!”

यह वाक्य आपने भी सुना ही होगा ना ? या फिर कहीं पर पढ़ा होगा। याद आया कुछ कहाँ पढ़ा है..?

चलिए बरखुरदार.. हम ही आपकी मदद किये देते हैं इसमें। तो ज़नाब.. यहाँ बात हो रही है अख़बारों में आने वाले सरकारी महकमों के अफसरों के तकिया-कलाम की…

आये दिन हमें किसी न किसी सरकारी दफ़्तर के बड़े साहब का ये बड़ा ही प्यारा वाक्य अख़बार में देखने को मिल जाता है कि “अभी मैं बाहर हूँ । दफ़्तर में पहुँचने के बाद ही इस मामले पर कुछ सकूँगा।” और फिर आती है इन साहब की दफ़्तर पहुँचने की चाल.. जिस चाल से चलकर ये अपने दफ़्तर पहुँचते है और मामले की तफ़्तीश कर कुछ बताते हैं, उस चाल से तो धरती का सबसे धीमा जानवर भी इन्हें एक बारगी तो अपना गुरु मान ही लेगा।

हर दिन किसी ना किसी गाँव या शहर की ख़बर अखबारों में आती है कि आज फलां विभाग वालों की वज़ह से पाइपलाइन फूट गयी तो आज किसी दूसरे विभाग की वज़ह से सड़क खोद दी गयी। अब ये भलेमानुस काम तो जनता की भलाई के वास्ते ही करते हैं मग़र जाने अनजाने में उस भलाई के काम से बेचारी जनता को कितने दुःख झेलने पड़ जाते हैं ये इनको नहीं दिख पाते हैं।

और जब जनता इनके दफ्तरों में जाके कोई अर्जी या शिकायत लेकर जाती है तो अव्वल तो बाबूजी से सामना होता है जो ना जाने कितने टेबलों पर इनको नचाते रहते हैं। फिर अगर किस्मत अच्छी हुई (यानी की आपकी जान पहचान अच्छी हुई) तो बड़े साहब से मिलने का मौका मिलता है । अब वहां भी बड़े साहब होते नहीं है । फ़ोन पर बात अगर हो भी जाती है तो साहब ने तो एक बात रट्टू तोते की तरह रट रखी होती है – “अभी मैं बाहर हूँ..। इस बारे में ऑफिस में आके ही बता पाऊँगा ।” मतलब इतनी सारी परेशानियाँ झेलने के बाद साहब की बात सच में एक (झूठी) उम्मीद जगा जाती है कि अब तो कुछ अच्छा होगा ही । क्या करें जी, जनता है ना.., नेता-अफसरों पर तो भरोसा करना बरसों से मजबूरी रही है बेचारी की।

और इससे भी एक क़दम आगे बढ़कर एक विभाग वाले तो हमेशा दूसरे की गलती बताते रहते हैं और दूसरे विभाग वाले पहले की । जैसे कि इन दोनों में होड़ मची रहती है कि नाच ना जाने आँगन टेढ़ा वाली कहावत हम में से किसके लिए ज़्यादा सही रहेगी । मतलब हद हो जाती है मतलबीपन की भी।

या कोई नया नया अफसर किसी दफ़्तर में जॉइन करता है और उसके जॉइन करने से तुरंत पहले ही दफ़्तर में कोई बड़ा कांड हो जाता है तब भी उससे संपर्क करने पर यही जुमला बाहर आता है- “मैंने अभी अभी जॉइन किया है । पूरी बात मैं आपको बाद में ही बता सकूँगा ।” जबकि साहब को पहले से ही पूरे कांड की ख़बर होती है और ये भी पता होता है कि आलाकमान ने उन्हें इस कांड को दबाने के लिए ही इस महकमे में भेज है । उन सभी अफसरों पर भी नेताओं ने ये कहावत बिल्कुल सटीक बैठा दी है कि “आये थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास”।

अरे साहब.., काम नहीं करना हो तो सीधे बोल दो या ज़्यादा कमीशन में ज़्यादा हिस्सा चाहिए हो तो भी सीधे बता दो, हम आपके मांगे से ज्यादा देंगे । मग़र बेबस जनता को बिला-वज़ह परेशान तो मत करो । नहीं तो किस दिन भ्रष्टाचार निरोधक वाले भी आपसे यहीं कहेंगे कि हम आपके मांगे से ज़्यादा देंगे।

और आप तब भी यही रटा-रटाया जवाब देना…

“मैं अभी बाहर हूँ… बाद में सारी स्थिति क्लियर करता हूँ। ”

– दीपाश जोशी

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This Post Has 9 Comments

  1. Hansraj sain

    Very nice sir

    1. Deepash Joshi

      प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार प्रिय मित्र हंसराज जी सर

  2. Ilyas Ahamed

    Awesome bro…👌👌

    1. Deepash Joshi

      शुक्रिया इलियास अहमद जी सर.. इसी तरह आपका स्नेह बना रहे 🙏🙏

  3. Deepash Joshi

    प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार हंसराज जी सर

  4. Deepash Joshi

    Thanks Neeraj Ji For Liking My Article..!!

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