सच कहती हूँ पग की तुम्हारी
मैं बाधा कभी ना बनूँगी
भूल गये तुम अगर जो मुझको
फिर भी ना तुमसे लड़ूंगी
सच कहती हूँ पग की तुम्हारी
मैं बाधा कभी ना बनूँगी
हूँ प्रेम विरह में, मजबूर मैं विरहन
पर विरह न जाहिर करूँगी
मैं राधा हूँ अगर भूल भी जाऊं
पर कृष्ण तुम्हें कैसे भुलुंगी
सच कहती हूँ पग की तुम्हारी
मैं बाधा कभी ना बनूँगी।
मुझको याद है तुम्हारी वाणी
प्यार से तुम कहते थे मुझको
कभी प्रिये, कभी राधा रानी
पर कृष्ण तुम्हारी ही नजरों में
क्या नहीं है मेरी कोई कहानी
अब चाहे मुझे भूल भी जाओ
पर मेरी स्मृतियों में अक्सर
मैं याद तुम्हें ही करुँगी
सच कहती हूँ पग की तुम्हारी
मैं बाधा कभी ना बनूँगी।
तुम ही तो थे कहते मुझसे
एक पल दूर ना रहोगे मुझसे
फिर कौन सी ऐसी मोह में फंसके
तोड़ दिये अब सारे रिश्ते
अब मुरली की आवाज़ तुम्हारी
मैं कृष्ण किससे सुनूंगी
सच कहती हूँ पग की तुम्हारी
मैं बाधा कभी ना बनूँगी।
सदा कृष्ण तुम रहो सुखी
कहती है अब तुम्हारी सखी
पर श्रृंगार मेरा ये कृष्ण है आखिरी
दुबारा कभी न करूँगी
बन जोगन अब उम्र के अन्त तक
मैं प्रतीक्षा तुम्हारी करुँगी
पर सच कहती हूँ पग की तुम्हारी
मैं बाधा कभी ना बनूँगी।
– नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार, भारत
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