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महंगाई की मार

~ महंगाई की मार ~

क्या लिखूं, किस पर लिखूं,
सोच कर मन से विचलित हो जाता हूँ ।
पर इस विवशता के पाश में भी
अपनी कलम से कुछ लिखता जाता हूं।

महंगाई की मार ने सारा बजट बिगाड़ दिया
आमदनी से ज्यादा खर्चा बढ़ा दिया।
कैसे जीवन गुजारें, कैसे परिवार चलायें,
ये सोचकर मन विचलित सा हो जाता है
और ये सवाल सबके मन में आता है।

शेयर मार्केट हो या स्वर्ण बाजार
आम आदमी के काम नहीं आते है ये व्यापार
इनके घटने बढ़ने से कोई फर्क नजर नहीं आता है ।
आटे, दाल और तेल से ही एक
आम आदमी अपना परिवार चलाता है।

अब गुजारिश अब सरकारों से
सब के दाम बढ़ाओ पर
रोटी ,कपड़ा और मकान पर
ऐसा बजट बनाओ
ना बढ़े दाम कभी इनके,
हर परिवार को मिले
वाजिब दाम पर जरुरी चीजें
तभी हम सभी खुश रह पाएंगे।
अपने परिवार का खर्च चला पाएंगे
और एक खुशहाल जीवन जी पाएंगे।

मुझे लगता है अच्छे दिन जरूर आयेंगे।
बढ़ती हुई महंगाई पर हम जरूर काबू पाएंगे।
पिछले दिनों को भूलकर
एक नया इतिहास बनायेंगे
हाँ… अगर हम सभी आत्मनिर्भर होंगे
तभी महंगाई पर काबू पाएंगे।

– कवि कौटिल्य

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