“लड़कियाँ सब समझ जाती है।”
इक लड़की है जो कुछ बोलती नही
जुबां अपनी वो खोलती नही
खामोश क्यों रहती है पता नही
सब कुछ सहती जाती है
किसी को भी कुछ कह नही पाती
न ही अपनी आपबीती सुनाती है
अपने सपनो को भी दबाती है
खुद को न जाने कैसे सुलाती है
चेहरे पर झूठी मुस्कान लेकर
अंदर ही अंदर रोती जाती है
जो चाहती है वो भी चाह नही पाती है
खुद के ही सवालो में उलझ जाती है
अपने हालात बता नही पाती है
और हमें लगता है कि
लड़कियाँ सब समझ जाती है।
- कूमार हरीश
यह रचना मेरे द्वारा स्वरचित व पूर्णतया मौलिक है। इसका सर्वाधिकार मेरे पास सुरक्षित है। आपके सुझावों व विचारों की प्रतीक्षा मे…कुमार हरीश
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