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क्या लिखूं अब आज मै

~ क्या लिखूं अब आज मै ~

क्या लिखूं अब आज मै, कलम भी अब ये सोच रही है
भूखे भेड़ियों की हैवानियत, परियों के जिस्म को नोच रही है

हर दूसरे इंसान के चेहरे के पीछे, है चेहरा शैतान का
है यही सच जान लो, अपने हिंदुस्तान का

आये विवेकानंद इस धरा पर, ले अध्यात्म की अभिलाषा को
आये थे कलाम इसी धरा पर, बदलने विज्ञान की परिभाषा को

कभी गूंजती थी आवाज़ इस धरा, पर शहनाई बिस्मिल्लाह की
पर आज हैवानियत के इस मंज़र को देख, शर्मिंदा है अल्लाह भी

पूजा जाता है जिस देश मे, नारी को देवी मानकर
तुम नोच देते हो उसके जिस्म को, खिलौना जानकर

होती अगर आज लक्ष्मीबाई, तो रणचंडी बन जाती
तुम पापियों के सिर को तलवारो से काट लाती

बेटियों पर हो रहे अत्याचारों पर कटाक्ष करती यह कविता

जिस धरा पर ना जाने कितने, वेद और पुराण रचे गए
उसी धरा पर हो खड़ा, तू सोच ? हम कहां थे और अब कहाँ आ गए !

भगत सिंह, बिस्मिल,  असफाकउल्लाह, तेरे बलिदानो का अब मोल नहीं है
इस नपुंसक भीड़ की आवाज़ तो है, पर उस आवाज़ मे कोई बोल नहीं है

अक्सर सुनाई देती थी जिस देश में, गौरव-गाथा  बलिदान की
चंद्रशेखर के अभिमान की और सुभाष के स्वाभिमान की

आज उस देश की अस्मिता पर ना जाने कितने सवाल खड़े हुए है
अब भी कुछ दुर्दांत भेड़िये बेटियों की इज़्ज़त पर हाथ डालकर अड़े हुए है

अरे काटो हाथ, लटकाओ फांसी, या बेटी तुम खुद ही युद्ध करो
बनकर भवानी दुर्गा तुम, इन महिसासुर के रक्त से इस पावन धरा को शुद्ध करो… !

आदित्य मुकेश मिश्रा

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This Post Has 4 Comments

  1. Niraj Srivastava

    समाज में नारी दुर्दशा की बड़ी ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति। आदित्य जी आपने सही कहा सामाज कि हर महिला को आज दुर्गा और चंडी बनकर ऐसे राक्षसों का सामना करना चाहिए।

    1. नारी के सम्मान के लिए लेखक को सदैव लिखना चाहिए

  2. अद्भुत रचना आदित्य भाई आपने सच्चाई को काब्य रूप में सामने लाया। अभिनंदन 🙏

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