राजनैतिक व्यवस्था पर व्यंगात्मक कविता – काल कोठरी
तानाशाही को
तानाशाही न कहें
तो
और क्या कहें
आपने विकास तो किया
मगर
सिर्फ अपनी कुर्सी के
आसपास
आपने आजतक हमें
एक झूनझूना दिया है
विकास के नाम पर
जिसे आपकी पार्टियों के
झंडे उठाए खडी
भेड़ों की भीड़
बजाती रहती हैं हर रैली में
या हर रोज सोती जागती
आपने देश को फैंक दिया है
एक अन्धेरी काल कोठरी मे
जहां अश्लीलता है, बेइमानी है
लूट है, झूठी काल्पनिक योजनाएं हैं,
और प्रश्न पूछने वालों की
कटी हुई गर्दनें
पड़ी हैं इसी काल कोठरी में।
– राजेश ‘भारती’
लेखक से फेसबुक पर जुड़ने के लिए क्लिक करें।
संघर्ष करो – कविता
मैं अभी बाहर हूँ..!! – लेख
बाल यौन शोषण – कविता
यदि आप लिखने में रूचि रखते हैं तो अपनी मौलिक रचनाएँ हमें भेज सकते हैं,
आपकी रचनाओं को लिखो भारत देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
यदि आप पढ़ने में रूचि रखते हैं तो हमारी रचनाएँ सीधे ई-मेल पर प्राप्त करने के लिए निचे दिए गए ई-मेल सब्सक्रिप्शन बोक्स में ई-मेल पता लिखकर सबमिट करें, यह पूर्णतया नि:शुल्क है।
हम आशा करते हैं कि उपरोक्त रचना ~ काल कोठरी ~ आपको पसंद आई होगी, अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट करके अवश्य बताएं। रचना अच्छी लगे तो शेयर भी करें।
This Post Has 7 Comments
शुक्रिया
🙏🙏
कुछ कहती है कविता आपकी
🙏
Pingback: शिक्षा का अधिकार : कविता - रूपचंद सोनी | लिखो भारत डॉट कॉम
आपकी रचनाओं में ना जाने क्या बात है जब भी मैं इनको पड़ता हु ये मुझे अजीब सा संकेत देकर एक अलग सी दुनिया की और खींच लेती है ना जाने ये मुझे क्या कहना चाहती हैं
Pingback: सावन (श्रावण) पर कविता - मनोरमा शर्मा | लिखो भारत डॉट कॉम