इंसान जल रहा है,
इंसान से यहाँ का।
ऐसा है दौर आया,
सुना पड़ा इलाका।।
मुश्किल भरा सफर है,
कब हो क्या इसका डर है
देखे नजर जिधर भी,
बस मौत का कहर है
इंसा बना खिलौना,
है खेल ये खुदा का
इंसान जल रहा है,
इंसान से यहाँ का।
अब भी संभल जा बुजदिल,
कुछ भी नहीं है मुश्किल
बस हौसला जुटा लो,
है पास में हीं मंजिल
खूद बन दिखा सिकंदर,
मत आस कर वफा का
इंसान जल रहा है,
इंसान से यहाँ का।
सपने अटल तु करले,
मन में उमंग भर ले
घूंट-घूंट के जीना छोड़ो,
कुछ नाम करके मरले
ये खौफ कब तलक है,
‘आनंद’ इस जहाँ का
इंसान जल रहा है,
इंसान से यहाँ का।
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This Post Has 3 Comments
बहुत बहुत आभार अभिनंदन 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
अति सुन्दर रचना💐🙏
बहुत बहुत आभार