~ हिंदी दिवस विशेष ~
मातृभाषा बना दिया था पुरखो ने जिसे हमे,
उस धरोहर को मात्र भाषा बनाकर छोड़ दिया,
हम निर्लज्जो ने आधुनिकता के दिखावेपन में
हिंदी का कद भी माथे की बिंदी सा तोड़ दिया,
भारतमाता के श्रंगार लड़ी को लय में बुनना छोड़ दिया,
कुम्हार ने हाथोंसे अपने निर्माण का पहिया तोड़ दिया,
हम भूल गए अपने भावो की उस भाषा को,
जो पैदा होते ही बिन सीखे मुख से निकली थी,
हम भूल गए उस अमृत – वाणी की मर्यादा को,
जो युगों युगों से पहचान हमारी संस्कृति की थी,
अपनी ही मां को मां के लालो ने वृद्धाश्रम छोड़ दिया,
मातृ भाषा हिंदी से माता के लालो ने नाता तोड़ दिया,
हिंदी ही थी जो आजादी का पहला हथियार बनी,
मुगल रहे हो या अंग्रेज डटकर विरोध में खड़ी रही,
टुकड़े – टुकड़े में जब जब बिखरा हिंद देश हमारा,
हिंदी भाषा ही एकीकरण का सूत्राधार बनी रही,
संगठन की उस रस्सी को उसके बल ने ही तोड़ दिया,
हिंद देश के लालो ने ही क्यों हिंदी पढ़ना छोड़ दिया,
हो ह्रदयशूल पीड़ा घनी कोई सब हिंदी हर लेती है,
हिंदी गीत गाने कविता तब मां की लोरीसी लगती है,
केशव भूषण बिहारी मैथिली की लेखनी तब हमको,
बरगद – आम के पेड़ो की ठंडी छांव सी ही लगती है,
मां शारदे केपुत्रों ने सुर-साधना से मुख को मोड़ लिया,
हिंदी के मीठे गानों में विदेशी भाषाका विष घोल दिया,
– पं. शिवम् शर्मा
रूरा, कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश
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