~ हिंदी दिवस पर कविता ~
हिंदी से संस्कृति हमारी हिंदी से है आन,
हिंदी से ही विश्व में देखो है अपनी पहचान।
है दुर्भाग्य कैसे ये अपना अस्तित्व खो रही है,
अपने ही इस देश में देखो हिंदी रो रही है।।
हिंदी है ह्रदय हमारा हिंदी ही है जान,
हिंदी है आवाज देश की हिंदी ही आह्वान।
फिर भी जनमानस पर इंग्लिश हावी हो रही है,
अपने ही इस देश में देखो हिंदी रो रही है।।
हिंदी है देवों की भाषा और वेदों की भाषा,
गर्व हमें हैं हिंदी पर हिंदी कहलाती राष्ट्रभाषा।
फिर भी क्यों गहरी निद्रा में हिंदी सो रही है,
अपने ही इस देश में देखो हिंदी रो रही है।।
कहता हूं तुम एक थपकी से इसे जगा दो,
जो बादल छाए हैं इस पर उन्हें हटा दो।
उगने ना दो उन बीजों को जो इंग्लिश बो रही है,
अपने ही इस देश में देखो हिंदी रो रही है।।
– रविंद्र कुमार सिरोही ‘रवि’
ग्राम – जसाला, जिला शामली, उत्तर प्रदेश
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