~ गुरु पूर्णिमा पर कविता ~
ईश्वर से भी बड़ा धरा पर
गुरु नाम का नाम
जिसको निश दिन शीष झुकावें
मानस करें प्रणाम।
सबसे पहली गुरु है माता
संस्कार देती और भाषा
पिता भी अपने स्नेह प्यार से
गुरु का हर कर्तव्य निभाता।
शिक्षक हमको देते ज्ञान
बतलाते सृष्टि का विधान
प्रकृति भी गुरु है अपना
चाहता बहुत कुछ हमसे कहना।
रोज़ सुबह फूलों की भाँति
कहता हमें, महकते रहना
बहती नदियां देती ज्ञान
आगे बढ़ो, ना करो विश्राम।
ईश्वर ने भी गुरु के पद को
संज्ञा दिया है सबसे महान
इस धरा के हर गुरु को
‘नीरज’ करता सदा प्रणाम।
मोतिहारी, बिहार, भारत
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This Post Has 2 Comments
अति सुन्दर 👌
धन्यवाद। पूनम जी।