सुबह सुबह जब दो तीन बार आवाज देने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला तो दूध वाले भैया ने आखिर घंटी बजा ही दी।
घंटी की तेज आवाज से मीनू की नींद झट से खुल गई, उसने दरवाजा खोला और दूध लिया फिर मुझे जगाने आई।
चलो उठो, छ: बज गए हैं, आज उठने में बहुत देर हो गई।
आपको पता है आज योग दिवस है। आप को भी योग करना होगा ना! फिर वो योगारूपी फोटो फेसबुक पर अपलोड भी करने होंगे!
ढेर सारे लाईक और कमेंट्स आपकी पोस्ट का इंतजार कर रहे होंगे। है ना ?
वो मुझे ताना मार रही थी या सच का आईना दिखा रही थी!
उसका यह व्यंग्य सुनकर मैं लाल हो गया।
मैंने गुस्से में उसे घूरा
मुझ पर गुस्सा करने से कुछ नहीं होगा।
मैंने वही कहा है जो सच है
इसलिए अब देर मत करो और जल्दी उठो। (वो कड़क लहजे में बोली )
आप जल्दी फ्रेश हो जाओ जितने मैं चाय बना लेती हूँ।
मैं अपने जरूरी कार्यों से निवृत हुआ और योग करने के उद्देश्य से मेट लेकर छत पर चला गया।
चाय आए तब तक क्यूँ ना देश दुनियां की खबर ली जाए।
कुछ इन्हीं मानसिक विचारों के साथ मोबाइल की स्क्रीन पर बने हुए फेसबुक की दुनिया के प्रवेशद्वार पर अंगूठा दे मारा।
फेसबुक पर सबसे पहले दर्शन पड़ोस के शर्मा जी के हुए।
सिर के बल उल्टा खड़े होकर फोटो खिंचवायें हैं, कितना मुस्किल होगा ना… एक लाईक तो बनता है।
उनको लाईक करने के बाद वर्मा जी, दुबे जी, चौबे जी जैसे अनेक परिचितों ने विभिन्न मुद्राओं मे फेसबुक पर योग धारा बहा रखी थी।
सात बजते बजते तो कोरोना की दूसरी लहर की तरह योगा भी घर घर तक फैल चुका था।
सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म पर बस हेश टैग #योगा।
हाथी से भी मोटे लोग भिन्न भिन्न मुद्राओं मे फोटो अपलोड कर रहे थे और ऊपर लिख रहे थे… करो योग रहो निरोग…
भाई… आज ही क्यूँ ? रोज क्यूँ नहीं ?
मुझे आभास हुआ कि मीनू का ताना सटीक था,
ये सब दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं है।
ये वही देशभक्ति है जो पंद्रह अगस्त के सूर्योदय के साथ चढ़ती है और सूर्यास्त होने पर झंडे के उतरने के साथ उतर भी जाती है।
सोलह अगस्त को कोई देशभक्ति की बातें नहीं करता।
जितना योग आज हो रहा है काश के उतना हर दिन होता तो पिछले दिनों देश मे जो ऑक्सीजन संकट आया, नहीं आता।
योग एक साधना है, कोई होली का गुलाल नहीं है जो प्रतिकात्मक मनाया जाए।
योगा कोई त्यौहार नहीं है जिसे एक दिन के लिए मनाया जाए। यह तो हमारी आदर्श जीवन-शैली का अभिन्न अंग है जिसे एक दिन नहीं ब्लकि प्रतिदिन अपनाना चाहिए। योग ही वो शक्ति है जो हमे निरोग रख सकती है।
सबकुछ जानते हुए भी न जाने क्यूँ अपनाने से कतराते है, वक्त नहीं है, नींद नहीं खुलती, हम तो वैसे ही स्वस्थ है,
ऐसे ढेरों बहाने है नित्य योग नहीं करने के।
मैं यह सब सोच ही रहा था कि मीनू भी छत पर आ गयी। घंटा भर योग करने के बाद मीनू बोल पड़ी
क्यों… हर साल की तरह आज फोटो नहीं खिंचवायें आपने! क्या बात है… आज फेसबुक पर फोटो अपलोड नहीं करने है क्या ?
(उसने व्यंग्य का एक और बाण छोड़ दिया)
नहीं देवी…
आपकी बात मेरे समझ में आ गयी ।
अब सिर्फ फेसबुक के लिए नहीं बल्कि खुद के स्वास्थ्य के लिए योग करेंगे।
और एक दिन नहीं, नित्यदिन योग करेंगे और
जब साल के पूरे तीन सौ पेसठ दिन योग करने की आदत हो जाएगी तब फोटो अपलोड कर के लिखेंगे
“प्रतिदिन योग करें निरोग”।
कुमार हरीश
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हम आशा करते हैं कि योग दिवस पर लिखा गया यह व्यंग्यात्मक लेख आपको पसंद आया होगा, अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट करके अवश्य बताएं। लेख अच्छा लगे तो शेयर भी करें।
This Post Has 4 Comments
बिल्कुल सही लिखा है हरीश भैया आपने lकड़वी सच्चाई है यह जिसे हमें स्वीकार करना पड़ेगाl
हरीश भैया अब अपने लिखो भारत पर गतिविधियां बहुत धीमी हो गई हैंl
अगर हमें लिखो भारत को अलग पहचान दिलानी है तो थोड़ा समय देना पड़ेगा
आपने तो हमारी आंखे खोल दी अच्छा लेख लिखा सत्य बात कही आपने और हम सब आज से योग करे और निरोग रहे
bahut bahut aabhar aapka rahul bhaiya