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दलित साहित्य का स्त्रीवाद स्वर- किताब समीक्षा

~ दलित साहित्य का स्त्रीवाद स्वर – किताब समीक्षा ~

कुछ पुस्तकें वास्तविकता में दलित नारी और उन पर हुए अत्याचारों, क्रूरता और हिंसात्मक प्रवृत्ति को उजागर करती है।

इन्हीं में से एक पुस्तक “दलित साहित्य का स्त्रीवादी स्वर” लेखिका विमल थोरात जी ने लिखी है।
इस पुस्तक में विमल जी ने नारी मुक्ति का संघर्ष, उसके मन की आकांक्षा और नारी को नारी की देह के अलावा मानुषी नजर से क्यों नहीं देखा जाता,  इस कड़वे सच को उजागर किया है।

विमल थोरात… एक ऐसी स्त्री है जो स्त्री विमर्श, दलित विमर्श एवं मानव अधिकारों से जुड़े सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों से जुड़े सवालों को उठाती रहती हैं।  ऐसी लेखिका का जन्म महाराष्ट्र के अमरावती स्थान में हुआ।

विमल थोरात जानी मानी लेखिकाओं में से एक है जिनकी अभी तक तीन पुस्तकें छप चुकी हैं  और जे. एन. यू. से दलित साहित्य पर हिंदी में पहली पी.एचडी करने वाली स्त्री भी वही है।

दलित स्त्री के आत्मकथन संवाद तथा दलित स्त्रियों के जीवन की मार्मिकता को बयां करती हुई पुस्तक है।
इस पुस्तक में दलित आत्मकथाकार जैसे बेबीताई कांबले की  ‘जीवन हमारा’  शांताबाई कांबले कि ‘माझ्या जलमाची’ कौशल्या बैसंत्री की ‘दोहरा अभिशाप’ आत्मकथाकारों ने बहुत ही मार्मिकता से अपने शब्दों को वाणी प्रदान की है।

आत्मकथनों में अभिव्यक्त संदर्भ, परिवेश, समस्याओं तथा संघर्ष का स्वरूप बहु स्तरीय है।
एक दलित स्त्री को जीवन में शिक्षित होने के लिए संघर्ष, जातिगत पहचान की वजह से प्रगति की
हर कदम पर आने वाली कठिनाइयों से जूझना आर्थिक सफलता के लिए प्रयास,
भूख की लड़ाई तथा बाहर होने वाले अपमान, अवहेलना तथा शोषण की तीसरी मार को भी झेलना पड़ता है।

 “दलित साहित्य का स्त्रीवादी स्वर” 

सचमुच एक दलित नारी, नारी होने की और दूसरा दलित होने की पीड़ा को साथ साथ झेलती है।
कुमुद पावडे कहती है कि “मैं यहां महाविद्यालय में संस्कृत पढ़ाती थी।

हमें बहुत खुशी है, शब्द तो सरल ही होते लेकिन उनका व्यंग्यात्मक व्याख्यान मैं ही समझती,

कुछ तो सीधे तौर पर अपना मंतव्य व्यक्त करते, किस जन्म का पाप है कि हमें आपसे संस्कृत
पढ़नी पढ़ रही है”। जन्म से तो जाति जुड़ी रहती है मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ती।

इस प्रकार एक दलित स्त्री के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आने के बाद और
अपमान सहने के साथ ही शिक्षा जब मिलती है तो किसी उपहार से कम नहीं होती।

परदेसी रामजी ने शोषण की तरफ अपना ध्यान आकर्षित करते हुए लिखा है “कामरेड”!
बाकि परते पुस्तक के पन्नो के खुलने के साथ साथ खुलेगी… आप इस पुस्तक को पढ़िएगा जरुर।

उषा यादव

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