बाल यौन शोषण विषय पर कविता
बन्द कर ले द्वार उद्यान के माली,
अब भवरे इंसान बन शैतान हो गए है !
अब देह ही नहीं केवल इनकी काली,
ये नज़रों से भी बेईमान हो गए है !!
अब ये वात्सल्य से गुजर वासना में
पहुंच चुके है,
सारी इंसानियत, लज्जा, मानवता
सब की सब पानी की तरह सोख चुके है !
अब मासूमियत में भी हवस
झलकती है इन्हे,
ये दरिंदे, ये भेड़िए, ये हैवान
अब खूंखार पिशाच हो गए है !!
आसान नहीं है पहचान इनकी कर पना,
ये मासूमियत गोरी चमड़ी लपेट
मीठी जुबान के साथ
पूरे समाज में घुल मिल चुके है !
रखना बचा के अपने नन्हे गुलो को
घरों में सजाकर ,
अक्सर ये अपनों के ही शिकारी हो गए है !!
कभी स्कूल तो कभी मोहल्ले में
तो कभी अपने ही घर में
तो कभी स्कूल बस में ,
कभी भी कहीं भी फस जाते है
ये मासूम, दरिंदो के जद में !
अब मन्दिर मस्जिद जैसे
धार्मिक स्थल भी
इनके शिकार स्थल हो गए है !!
कभी चोकलेट, खिलौनों के लालच में,
तो कभी खेल ही खेल में,
कभी अपनत्व के बहकावे में
तो कभी फस जाते झूठे स्नेह में !
बता के रखना इन्हे हर अच्छे बुरे
छुअन का एहसास,
न करें हर किसी पर इतना जल्दी विश्वास
ये बाल यौन शोषण करने वाले दरिन्दे
अपनी पैदाईशी पर ही धिक्कार हो गये …!!
– शिवम् शर्मा
रूरा, कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश
लेखक से फेसबुक पर जुड़ने के लिए क्लिक करें।
ताश के पन्नों सी जिंदगी – कविता
संघर्ष करो – कविता
नारी उत्पीड़न – कविता
यदि आप लिखने में रूचि रखते हैं तो अपनी मौलिक रचनाएँ हमें भेज सकते हैं,
आपकी रचनाओं को लिखो भारत देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
यदि आप पढ़ने में रूचि रखते हैं तो हमारी रचनाएँ सीधे ई-मेल पर प्राप्त करने के लिए निचे दिए गए ई-मेल सब्सक्रिप्शन बोक्स में ई-मेल पता लिखकर सबमिट करें, यह पूर्णतया नि:शुल्क है।
हम आशा करते हैं कि उपरोक्त रचना बाल यौन शोषण आपको पसंद आई होगी, अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट करके अवश्य बताएं। रचना अच्छी लगे तो शेयर भी करें।
This Post Has One Comment
Super