balatkari-samaj
कविता
समर्पण सिंह

बलात्कारी समाज

सुनो बलात्कारी समाज कभी थी वो भी एक जिंदादिल जान, पर एक हादसे ने छीन ली उससे उसकी मुस्कान। कुछ सालों पहले की है यह

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