आत्मनिर्भर भारत विषय पर एक बेहतरीन कविता
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अधर्म, अनीति और अन्याय पर शास्वत संस्कृति का यह प्रहार है
संसार को दिव्य ज्ञान जो दे, ऐसा मेरा आत्मनिर्भर हिंदुस्तान है
प्राचीन जिसका ज्ञान है, अद्भुत सब अनुसंधान है
विज्ञान जिससे मांगे मदद, वो हमारा वेद-पुराण है
शून्य से लेकर अनंत को परिभाषित हमने ही किया
आधुनिकता की जो बात करे, वो देश आत्मनिर्भर हमसे ही बना
नासा को विज्ञान का मान दिया
जर्मनी को संस्कृत का ज्ञान दिया
चीन को बुद्ध दिया हमने, तो
जापान को संस्कार दिया
गुरुकुल का ज्ञान हमने दिया, चाणक्य की नीति हमसे है
आर्यभट्ट का शून्य हमारा है, तो जगदीशचंद्र बसु का जीव विज्ञान भी हमीं से है
रोग जिससे भागे दूर वो योग ऋषि पतंजलि ने था दिया
सुश्रुत और मुनि चरक ने चिकित्सा पद्धति को दिया जीवनदान था
कथा, कहानी और ये किस्से, अब बातें सारी पुरानी है
आत्मनिर्भरता को परिभाषित करने वाले सारे हिंदुस्तानी है
दुनियां की तीसरी सबसे बड़ी फ़ौज हमारी है, तो
अमेरिका को जो दे अंतरिक्ष में टक्कर वो ‘इसरो’ का संस्थान भी हमारा है
सुई से लेकर जहाज के पीछे मेड इन इंडिया की छाप है
पिछड़े हुए भारत की अब दुनियां में अपनी एक पहचान है
घिरे है दुश्मन देशो से मगर ना घबराया ना शोक किया
परमाणु शक्ति होकर भी हमने हिंसा का विरोध किया
देश बसा है गांव में मेरा, गांव को भी समृद्ध किया
बिजली, सड़क, सुरक्षा, शिक्षा, व्यवस्था सब सुदृढ़ किया
दुनियां घिरी जब एक वायरस से तो हमने सबका साथ दिया
वैक्सीन दिया सभी को हमने और खुद का भी इलाज किया
कला संस्कृति, विधि व्यवस्था, नीति न्याय
सब में अब प्रथम हमारा स्थान है
ऐलान कर दो सारी दुनियां में, ये अब एक नया
उभरता हुआ आत्मनिर्भर हिंदुस्तान है !
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This Post Has 3 Comments
भाई आदित्य,
कमाल की लेखनी है आपकी। वाकई में आपने एक बहुत ही अच्छी कविता रच डाली है। जिसमें आज और कल दोनों का समावेश देखने को मिलता है। मैं आपके उज्जवल भविष्य की मंगल कामना करता हूँ और यह आशा करता हूँ कि आप अपनी अद्भुत लेखनी से हमें आगे भी यूँही लाभान्वित करते रहेंगे।
जय हिंद
नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार
हार्दिक धन्यवाद
बड़े भाई 🙏
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