देश के गद्दारों के ऊपर कुठाराघात करती चर्चित कवि राहुल कुमार सिंह की यह कविता अंतशय्या जयचंदों की
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है
जो गुणगान करें स्व बैरी का, निष्ठावान नहीं हो सकता है।
मेरा चित्त आज व्यथित हुआ है, देश विरोधी नारों से
भारत माँ का शीश झुका , आज घर में छिपे गद्दारों से
जयचंदों से अपने वतन का, सम्मान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता।
जहां गुलिस्तां में गुल धर्म के, रंग बिरंगे खिलते हैं
भाषा संस्कृति अलग यहां,फिर भी साथ में चलते हैं
नफ़रत की जो करे बुवाई, बागवान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है।
भारत माँ की जान नहीं हैं, इस रज़ के वो त्रान नहीं हैं
पाकिस्तानी नारे ये तो, देशभक्तों की पहचान नहीं हैं
माँ कि सुधा से घात करें, वह संतान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है।
लाल चौक पे अपने प्यारे झंडे फाड़े जाते हैं
भारत माँ के तन पे नुकीले खंजर गाड़े जाते हैं
झंडे पे जो आघात कर, निगहबान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है।
दिल्ली में आस्तीन के सांप, फन फैलाए बैठे हैं
भारत तेरे टुकड़े होंगे, वो सब शोर मचाए बैठे हैं
खंडित करे अपना वतन, वीर्यवान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है।
कुछ लोगों ने अपने आजाद को, आतंकी बतलाया था
भूल के उनके तप त्याग को, पूरे देश को बरगलाया था
उपेक्षा करे जो बलिदानी का, कुर्बान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है।
कुछ लोगों को असहिष्णुता,आज दिखाई देती है
मां भारती के लोरी में भी, अब चीख सुनाई देती है
जो हुआ न अपने देश का, कामरान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है।
ललकार ये मेरी गद्दारों को, खुल के आओ युद्ध करो
अगर हया बाकी है थोड़ी, स्व अंतर्मन को शुद्ध करो
मन कलुषित रखने से तो, समाधान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है।
सुनो देश के वीर जवानों, चूर इनके अरमान करो
पार्थ के सम खुद को आकों, गांडीव से संधान करो
लक्ष्य को भेद न पाए जो, चौहान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है।
आह्वान करूं मैं शासन से, नींद से जाग जाओ अब
विषधर केवल गरल उगलते, दूध नहीं पिलाओ अब
वो श्वान जो भोंके स्वामी पे, दरबान नहीं हो सकता है
जो अपमान करे निज माटी का, इंसान नहीं हो सकता है।
राहुल कुमार सिंह
नवी मुंबई (महाराष्ट्र)
लेखक से फेसबुक पर जुड़ने के लिए क्लिक करें।
नारी उत्पीड़न – कविता
कुछ करके जाना है – कविता
बलात्कारी समाज – कविता
यदि आप लिखने में रूचि रखते हैं तो अपनी मौलिक रचनाएँ हमें भेज सकते हैं,
आपकी रचनाओं को लिखो भारत देगा नया मुक़ाम, रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
यदि आप पढ़ने में रूचि रखते हैं तो हमारी रचनाएँ सीधे ई-मेल पर प्राप्त करने के लिए निचे दिए गए ई-मेल सब्सक्रिप्शन बोक्स में ई-मेल पता लिखकर सबमिट करें, यह पूर्णतया नि:शुल्क है।
हम आशा करते हैं कि उपरोक्त रचना अंतशय्या जयचंदों की आपको पसंद आई होगी, अपनी प्रतिक्रिया कमेन्ट करके अवश्य बताएं। रचना अच्छी लगे तो शेयर भी करें।