~ अमर शहीद राजगुरु पर कविता ~
गोरो ने गुलाम बनाया
जब अपने प्यारे भारत को
तब वीरों ने बिगुल बजाया
खदेड़ो इन हत्यारों को
क्रांति की एक लहर थी दौड़ी
आजाद हिंद कराने को
बाँध कफ़न का सिर पे सेहरा
थें सब मौत गले लगाने को
तब राजगुरु ने संकल्प लिया
एक विध्वंस मचाने को
सोलह वर्ष की अल्प आयु में
वह कूदा जंग-ए-आजादी को
साण्डर्स के हत्या से उसने
माँ भारती को तिलक लगाया था
अंग्रजी हुकूमत को उसने
अपना लोहा मनवाया था
था अचूक निशाना उसका
यह सबको बतलाया था
इंकलाब का नारा गुरु ने
मरते दम तक गाया था
फांसी के फंदे को भी
हंसकर गले लगाया था
शहीदों की चिताओं पर
लगते रहेंगे हरदम मेले
यह सबको बतलाया था।
– नीरज श्रीवास्तव
मोतिहारी, बिहार, भारत
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