“अब तुम ही हो”
जब भी तुमसे
मै मिलती हूँ
ऐसा लगता
है के जैसे
तुम ही हो
मेरी दुनिया
मेरा सबकुछ
अब तुम ही हो।
(2)
मै हूँ जैसे
तुम भी वैसे
जैसे कोई
बहता दरिया
बीच समंदर
कश्ती मेरी
तुम हो जैसे
जलता दीया।
(3)
आग बुझाये
जैसे पानी
जमीं को ओढ़े
जैसे आसमाँ
मैं हूँ बिजली
तुम बादल हो
मेरा सबकुछ
अब तुम ही हो।
(4)
साथ निभाना
सात जन्म तक
मै लुंगी
अग्नि के फेरे
मेरे सात वचन
तुम्हीं हो
मेरा सबकुछ
अब तुम ही हो ।
मीनू हरीश
यह रचना मेरे द्वारा स्वरचित व पूर्णतया मौलिक है। इसका सर्वाधिकार मेरे पास सुरक्षित है।आपको ये रचना कैसी लगी ? आपके सुझावों व विचारों की प्रतीक्षा मे…
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