अब मुझको भी ज़ाम से वफा हो गई ।
जब से तू जानेमन बेवफा हो गई ।।
आतिश बंद जलाया गुलिस्तान को ।
खुशियां जीवन की खफा हो गई ।।
आइना जब भी देखा था नूर तुम्हारा ।
कुछ सपने दिखा के क्यों दफा हो गई ।।
अब मैंखाने में हैं कदम चल पड़े ।
राहे तेरी गली से अब जुदा हो गई ।।
अब तक थी कटी शाम तेरी आगोश में ।
तेरी अबस अदा से अफसुर्दा हो गई ।।
प्यार के गुल खिलाए थे तेरे लिए।
मेरी गुलनाज क्यों अब सजा हो गई ।।
अब रहा ना वक्त मेरी जिंदगी में ।
मौत के संग अकीबत रज़ा हो गई ।।
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