ab ese raam

अब ऐसे राम पैदा नही होते

“अब ऐसे राम पैदा  नही होते”

लंकेश
दशानन
दसकंधर
अधिपति
लंका का
ज्ञानी
धरती का
महापंडित
भक्त शंकर का
पर श्रापित
पार्वती का
भेष साधू का
हरण सीता का
लांग न सका
लक्ष्मण रेखा और
फिर प्रयास जटायु का
बल हनुमान का
मिलन सुग्रीव का
उसकी वानर सेना का
वचन जामवंत का
निर्माण सेतु का
सहयोग गिलहरी का
नल नीर का
पाँव अंगद का
भेद विभीषण का
फिर
राम के हाथों
वध रावण का
“मै” का
घमंड का
दम्भ का
आसुरी शक्ति का
और विजय
सत्य की
धर्म की
सीता के सतीत्व की
राम की प्रतिज्ञा की
ऐसा लोग कहते हें
रावण को मोक्ष मिला
क्योंकि मिली थी मृत्यु
किसी राम के हाथों
पर मेरे मन की
समाज की विडम्बना
सीता हरण तो
रोज होते हे
लेकिन अब
ऐसे राम पैदा नहीँ होते!

कुमार हरीश


यह रचना मेरे द्वारा स्वरचित व पूर्णतया मौलिक है। इसका सर्वाधिकार मेरे पास सुरक्षित है।
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This Post Has 4 Comments

  1. सही कहा हरीश जी, अब राम कहाँ मिलते हैं। वैसे इस कलयुग में अब राम कहाँ मिलेंगे।

    1. राम तो नहीं बन सकते लेकिन हमें अपने भीतर के राम को जिन्दा रखना चाहिए

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