आखिरी बार
जब तुमसे मिला
नही था कोई
शिकवा गिला
न लफ़्ज
होंठो पर
न शिकन
चेहरे पर
थे अरमान कई
खुदा के फरमान कई
पर सब धरा सा रह गया
तुम चली गयी
और मै खड़ा सा रह गया!
जब मिला मै
आखिरी बार तुमसे
खुद से
खुद के ही ख़ातिर
सोचा
दूरियां थोड़ी कम होगी
आँखे तेरी भी नम होगी
दर्द दिल का थोडा कम होगा
दिल में दर्द
भरा भरा सा रह गया
तुम चली गयी
और मै खड़ा सा रह गया!
तुझे ढूँढना भी चाहा
पर कम्बख्त
ढूँढता तो भी कहाँ
किधर
किससे पूछता
तेरा कोई
ठिकाना भी तो नहीँ था
तेरे साथ एक ख़्वाब देखा था
वो ख़्वाब
ख़्वाब सा रह गया
तुम चली गयी
और मै खड़ा सा रह गया!
फिर इक दिन
मंदिर वाली गली में
हाथ में पूजा की थाली
मांग में सिंदूर लगाये
सुहाग की साड़ी पहने
तुम करीब से गुजरी
और पलट कर न देखा
ये देख दिल
जरा जरा सा रहा गया
तुम चली गयी
और मै खड़ा से रह गया!
कुमार हरीश
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